राष्ट्रपति ने किया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का शुभारंभ, कहा– “योग भारत की चेतना और विरासत का प्रतीक”

राष्ट्रपति ने किया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का शुभारंभ, कहा– “योग भारत की चेतना और विरासत का प्रतीक”

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर राज्यपाल ने की सनातन परंपरा और वैश्विक एकता की बात

मंत्री सुबोध उनियाल ने उत्तराखंड की ‘योग नीति 2025’ को बताया ऐतिहासिक पहल

देहरादून। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देहरादून में 11वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का शुभारंभ करते हुए कहा कि योग भारत की चेतना, विरासत और ‘सॉफ्ट पावर’ का जीवंत उदाहरण है। उन्होंने कहा कि योग केवल एक व्यायाम नहीं, बल्कि यह मानवता को जोड़ने का माध्यम बन गया है। “योग व्यक्ति से व्यक्ति, समुदाय से समुदाय और देश से देश को जोड़ने का कार्य करता है,”।

राष्ट्रपति ने सभी नागरिकों से योग को जीवनशैली का हिस्सा बनाने का आग्रह किया और कहा कि “जब व्यक्ति स्वस्थ होता है तो परिवार और फिर पूरा देश स्वस्थ रहता है।” उन्होंने संस्थाओं से योग को जनसुलभ बनाने की अपील की।

इस अवसर पर उत्तराखंड के राज्यपाल ले. जनरल गुरमीत सिंह (से. नि.) ने योग को भारत की प्राचीन सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर बताया। उन्होंने कहा कि आज यह दिवस विश्व में स्वास्थ्य, शांति और समरसता का प्रतीक बन चुका है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों को योग को वैश्विक आंदोलन में बदलने हेतु सराहा।

राज्यपाल ने इस वर्ष की थीम “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग” को भारत की सनातन सोच “वसुधैव कुटुम्बकम्” की वैश्विक अभिव्यक्ति बताया।

उत्तराखंड की ऐतिहासिक ‘योग नीति 2025’

इस मौके पर कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रेरणा से बनी ‘भारत की पहली योग नीति–2025’ की विशेषताओं को साझा किया। उन्होंने बताया कि इस नीति का उद्देश्य उत्तराखंड को योग उद्यमिता और अनुसंधान का प्रमुख केंद्र बनाना है।

मुख्य बिंदु:

योग केंद्र खोलने पर ₹20 लाख तक का पूंजीगत अनुदान।

अनुसंधान कार्यों के लिए ₹10 लाख तक का शोध अनुदान।

योग शिक्षकों के लिए प्रमाणन बोर्ड से प्रमाणन की प्राथमिकता।

वर्ष 2030 तक राज्य में 5 नए योग हब्स की स्थापना।

मार्च 2026 तक सभी आयुष स्वास्थ्य केंद्रों में योग सेवाएं उपलब्ध होंगी।

योग निदेशालय की स्थापना और विशेष ऑनलाइन योग प्लेटफॉर्म भी नीति में शामिल।

मंत्री ने कहा कि यह नीति राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को वैश्विक अवसरों से जोड़ने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।

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